मुख्यमंत्री पद पर पूरे पांच साल तो दूर चार साल का कार्यकाल पूरा करने से महज नौ दिन पहले इस्तीफा देने की मायूसी त्रिवेंद्र रावत के चेहरे पर दिखी। सरकार के महत्वपूर्ण फैसलों को गिनाते हुए आहत त्रिवेंद्र बोले मुझे क्यों हटाया गया इसका जवाब जानने को दिल्ली जाना होगा।
देहरादून।मुख्यमंत्री पद पर पूरे पांच साल तो दूर चार साल का कार्यकाल पूरा करने से महज नौ दिन पहले इस्तीफा देने की मायूसी त्रिवेंद्र सिंह रावत के चेहरे पर साफतौर पर दिखी। सरकार के महत्वपूर्ण फैसलों को गिनाते हुए आहत त्रिवेंद्र बोले, ‘मुझे क्यों हटाया गया, इसका जवाब जानने को दिल्ली जाना होगा।’
प्रदेश में बीते शनिवार से नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चल रही चर्चाओं पर करीब 72 घंटे बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने खुद ही सामने आकर विराम लगा दिया। राज्यपाल को इस्तीफा सौंपकर त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री आवास लौटे तो उन्होंने इस्तीफा देने के पीछे लंबी-चौड़ी भूमिका नहीं बांधी। अलबत्ता, इसे पार्टी का सामूहिक फैसला बताया। इस्तीफे की वजह जानने के लिए मीडिया ने ज्यादा जोर डाला तो फिर वह दर्द छिपा नहीं सके। पहले उन्होंने इस जोर देते हुए कहा कि चार वर्ष पूरा होने में सिर्फ नौ दिन शेष बचे थे। फिर यह भी कह दिया कि उनके इस्तीफे की वजह दिल्ली से ही जानी जा सकती है।
ताजपोशी के पीछे भी हाईकमान
दरअसल, प्रदेश में वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा को तीन चौथाई से ज्यादा भारी बहुमत मिलने के बाद ये हाईकमान का ही भरोसा रहा, जिसके आधार पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश सरकार की कमान मिली थी। तब मुख्यमंत्री पद पर उनकी ताजपोशी में विधायकों की राय से ज्यादा तवज्जो पार्टी हाईकमान के फैसले को मिली। चार साल से महज कुछ दिन पहले ही तकदीर का चक्र देखिए, मुख्यमंत्री पद का ताज गंवाने में भी विधायकों की निर्णायक भूमिका नहीं रही। यह फैसला हाईकमान का ही रहा।
इस्तीफे की वजह बयां कर गए सीएम
इस्तीफा देने की वजह जानने को दिल्ली जाने की बात कहकर खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ही इसके संकेत दे डाले। अपनी सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि का उल्लेख कर उन्होंने पार्टी को ही उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में चुनने का पूरा श्रेय भी दिया। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मुख्यमंत्री पद पर उनका चयन करने के बाद करीब चार साल तक उन पर पूरा भरोसा भी जताया।
विधायकों की नाराजगी की अटकलों को किया खारिज
इस भरोसे के बूते ही वह कई अहम फैसले लेने में कामयाब भी रहे। बाद में यह भरोसा उठने के पीछे की वजह मुख्यमंत्री ने भले ही नहीं बताई, लेकिन यह इशारा कर ही दिया कि यह फैसला भी पार्टी ने सामूहिक तौर पर ही लिया है। नेतृत्व परिवर्तन को लेकर विधायकों और मंत्रियों की नाराजगी की अटकलों को खारिज करते हुए मुख्यमंत्री ने अपना पक्ष सामने रख दिया।