सार
1965 में बर्फ में दब गया था यह परमाणु ऊर्जा से चलने वाला उपकरण
क्षेत्र से निकलने वाली नदियों में रेडियोधर्मिता की जांच की मांग
विस्तार
चमोली आपदा के कारण को लेकर जारी मंथन के बीच प्रदेश के पर्यटन और सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज ने कहा है कि नंदा देवी क्षेत्र में 1965 में बर्फ में दब गए न्यूक्लियर डिवाइस की अलग से जांच होनी चाहिए।
महाराज के मुताबिक वे यह नहीं कह रहे हैं कि इस न्यूक्लियर डिवाइस की वजह से चमोली की नीति घाटी में आपदा आई है। यह डिवाइस रेडियोएक्टिव है और इसकी वजह से नदियों का पानी दूषित हो सकता है।
महाराज के मुताबिक 1965 में चीन की सैन्य गतिविधियों पर नजर रखने के लिए नंदा देवी क्षेत्र में एक डिवाइस स्थापित किया गया था। इस डिवाइस को लगाने वाले दल के पास न्यूक्लियर ऊर्जा से चलने वाली बैटरी भी थी। बर्फ के तूफान के कारण यह बैटरी इसी क्षेत्र में कहीं दब कर रह गई थी।
महाराज ने कहा कि वे इसकी खोज और नदियों के पानी की जांच की मांग लगातार करते आ रहे हैं। इस बार चमोली जिले की नीति घाटी में आई आपदा का क्षेत्र भी वही है जो इस बैटरी के गुम होने का है।
ऐसे में न्यूक्लियर डिवाइस से कारण उत्सर्जित रेडियो एक्टिव प्रभाव की भी जांच होनी चाहिए। महाराज ने बताया कि जिस समय वे रक्षा समिति में थे, उस समय सैन्य अधिकारियों ने इस घटना की उन्हें जानकारी दी थी।
सिंचाई विभाग में सेटेलाइट अध्ययन का अलग प्रकोष्ठ बनाया
महाराज के मुताबिक चमोली आपदा ने एक बार फिर ग्लेशियरों को केंद्र में कर दिया है। ऐसे में सिंचाई विभाग को कहा गया है कि वह सेटेलाइट डाटा के आधार पर ग्लेशियरों की निगरानी का काम भी शुरू करे। इस काम के लिए अलग से प्रकोष्ठ भी गठित कर दिया गया है। प्रदेश में सिंचाई विभाग की ओर से भी जल विद्युत परियोजनाएं बनाई जाती हैं लिहाजा सिंचाई विभाग भी नदियों की निगरानी अपने स्तर पर करता है।