उत्तराखंड, देहरादून :
चार माह के भीतर उत्तराखंड में दो मुख्यमंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा है, अभी सबसे बड़ा सवाल यह है कि तीरथ सिंह रावत को क्यों चार माह का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए और क्यों ऐसी स्थिति आई कि उनके नाम उत्तराखंड के अब तक के मुख्यमंत्रियों में सबसे छोटे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहने का अनचाहा रिकॉर्ड जुड़ गया ।
यदि हम कहें कि इसका एक कारण सुदूर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं तो सहसा विश्वास न होगा, लेकिन ऐसा ही है ,
इस वर्ष 2 मई को आए पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणामों में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी भले तीसरी बार सरकार बनाने लायक बहुमत प्राप्त कर गई, लेकिन खुद मुख्यमंत्री बनर्जी अतिआत्मविश्वास के फेर में अपनी ही पार्टी के पूर्व नेता व भाजपा प्रत्याशी सुवेंदु अधिकारी से नंदीग्राम सीट का चुनाव हार गई थीं, लेकिन इसके बावजूद वह मुख्यमंत्री बनीं तो उनके सामने भी विधानसभा का सदस्य न होने के कारण तीरथ सिंह रावत की तरह ही मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के लिए 6 माह के भीतर यानी 8 नवंबर तक विधानसभा का सदस्य बनने की कानूनी बाध्यता है, किंतु केंद्रीय चुनाव आयोग पहले ही स्पष्ट कह चुका है कि कोविड-19 की परिस्थितियों के कारण वह एक वर्ष तक उपचुनाव कराने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में यदि केंद्र सरकार यदि तीरथ की कुर्सी बचाने के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग पर उपचुनाव कराने का दबाव बनाती तो उसे पश्चिम बंगाल में भी खाली पड़ी वीरभूम व भवानीपुर सीटों के लिए भी उपचुनाव कराने पड़ते, अब जबकि केंद्र सरकार ने केंद्रीय चुनाव आयोग के इस निर्णय के आगे अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की एक तरह से बलि दे दी है तो उनकी ओर से ममता बनर्जी को कोई अभयदान मिलने की उम्मीद नहीं ही की जा सकती