लंदन, ऑनलाइन डेस्‍क। 17 फरवरी को औद्योगिक देशों के समूह जी-7 की बैठक में सबकी नजर भारत पर रहेगी। जी-7 की अध्‍यक्षता कर रहे ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भारत, ऑस्‍टेलिया और दक्षिण कोरिया को इस शिखर सम्‍मेलन में एक अतिथ‍ि देश के तौर पर बुलाया है। भारत के प्रति दुनिया के विकसित मुल्‍कों की दिलचस्‍पी यूं ही नहीं है। भारत की तेजी से उभरती अर्थव्‍यवस्‍था और दुनिया में चीन की बढ़ती आक्रामकता से सबकी निगाहें उस पर टिकी है। पिछले वर्ष कनाडा के पूर्व प्रधानमंत्री स्‍टीफन हार्पर की अध्‍यक्षता वाले थिंक टैंक ने ब्रिटेन से कहा था कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को टक्‍कर देने के लिए भारत का सहयोग करना चाहिए। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत को बड़ी भूमिका निभानी चाहिए। इसके बाद से भारत को लेकर अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों के नजरिए में भारी बदलाव आया है।

जी-7 की एकजुटता चीन को संदेश

  • प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि जी-7 की एकजुटता कहीं न कहीं चीन के लिए एक संदेश है। खासकर इंडो-पैसिफ‍िक और दक्षिण चीन सागर में चीन की चुनौती को देखते हुए यह काफी अहम है। इंडो पैसिफ‍िक क्षेत्र न केवल व्‍यापारिक दृष्टि से बल्कि सामरिक रूप से काफी अहम है।
  • दुनिया भर की लगभग दो तिहाई आबादी इसी इलाके में बसी है। दुनिया का आधे से ज्‍यादा व्‍यापार भी इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है। भारत और जापान पर इसका सीधा प्रभाव है। दोनों देश इन सागरों पर बसे हैं। यूरोपीय देशों के भी यहां हित जुड़े हैं।
  • भारत, जापान और फ्रांस के लिए इंडो पैसिफ‍िक क्षेत्र किसी सुदूर क्षेत्र की सामरिक रणनीति का मसला नहीं बल्कि निकटता का ममला है। फ्रांस अधिकृति कई द्वीप इंडो पैसिफ‍िक क्षेत्र में आते हैं।
  • प्रो. पंत का कहना है कि कोविड-19 और गिरती अर्थव्‍यवस्‍था की मार झेल रहा अमेरिका शायद इंडो पैसिफ‍िक क्षेत्र में पूरा ध्‍यान केंद्रीत कर पाए। उधर, चीन लगातार प्रशांत और हिंद महासागर में अपनी ताकत का इजाफा कर रहा है। दक्षिण चीन सागर पर भी वह दबदबा बनाए जा रहा है। इसको लेकर उसका आए दिन फ‍िलीपींस, वियतनाम और इंडोनेशिया से टकराव की स्थिति उत्‍पन्‍न हो रही है। इस क्षेत्र में चीन से निपटना एक बड़ी चुनौती। ऐसे में जी-7 की एकजुटता चीन के लिए एक कड़ा संदेश होगा। 

     जी-7 और उसकी चुनौतियां

    व्‍यापारिक और नई सामरिक चुनौतियों के बावजूद जी-7 समूह के सदस्‍यों के बीच कई असहमतियां भी हैं। इसके पूर्व के जी-7 की बैठक में पूर्व राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप और अन्‍य सदस्‍य देशों के बीच मतभेद उभर कर आए थे। अमेरिका का आरोप था कि दूसरे देश अमेरिका पर भारी आयात शुल्‍क लगा रहे हैं। इसके अलावा पर्यावरण के मुद्दे पर भी सदस्‍य देशों के बीच गहरे मतभेद उभरे थे। इसके अलावा इस समूह की निंदा इस बात के लिए भी होती रही है कि बैठक में वैश्‍विक राजनीति और आर्थिक मुद्दे नदारद रहते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस समूह में एक बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्‍व नहीं होता है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण गोलार्ध का कोई देश इस समूह का सदस्‍य नहीं है।

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