देहरादून।
कीड़ा जड़ी तस्करी का दून में कोई पहला मामला सामने नहीं आया है। इससे पहले भी कीड़ा जड़ी तस्करी के कई मामले सामने आ चुके हैं। शक्तिवर्धक दवा तैयार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी भारी मांग है। इसी के चलते यह जड़ी हमेशा तस्करों के निशाने पर रहती है। बीते कुछ सालों में अनियंत्रित दोहन के चलते अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) कीड़ा जड़ी को RED LIST (संकटग्रस्त श्रेणी) में डाल चुका है। इसके बाद भी उत्तराखंड में वन विभाग इसकी तस्करी पर अंकुश नहीं लगा पा रहा है।
कीड़ा जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेंसिस है। इसे आम भाषा में यारसा गम्बू भी कहा जाता है। उत्तराखंड समेत विभिन्न उच्च हिमालयी क्षेत्रों (3500 मीटर से अधिक की ऊंचाई) में कीड़ा जड़ी पाई जाती है। कीड़ा जड़ी हैपिलस फैब्रिकस नाम के कीट के ऊपर फंगस के रूप में उगती है। यह फंगस प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 व बी-12 जैसे तमाम तत्वों से भरपूर होता है।
विशेष रूप से इसे शक्तिवर्धक दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत प्रति किलो 18 से 20 लाख रुपये आंकी गई है। यही कारण है कि तस्करों की नजर हमेशा रहती है। वैसे वन विभाग स्थानीय ग्रामीणों के माध्यम से हर साल इसका नियंत्रित दोहन कराता है, मगर इसकी आड़ में कीड़ा जड़ी को अनियंत्रित ढंग से निकाला जाता है। बताया जाता है कि इसकी तस्करी नेपाल के रास्ते चीन तक की जाती है। चीन में इसकी अधिक मांग है। आशंका है कि यदि कीड़ा जड़ी का अनियंत्रित दोहन व तस्करी नहीं रोकी गई तो भविष्य में इसके विलुप्त होने का खतरा है।