जब से किसानों की महापंचायतें शुरू हुई हैं, इस आंदोलन ने केंद्र सरकार और भाजपा की आंखें खोल दी हैं। किसानों को जितना परेशान किया जाएगा, हर राज्य में उसे उतना ही अधिक राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ेगा…
नई दिल्ली : किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की तरफ से हर बार कुछ ऐसा कहा जाता है कि जिससे यह आंदोलन कमजोर होने या टूटने की बजाए और ज्यादा मजबूती से आगे बढ़ने लगता है। अगर केंद्र सरकार अपनी जिद पर अड़ी रही तो आने वाले समय में उसकी मजबूरी बन जाएगी कि वह किसानों की बात सुने और उन पर अमल करे। अन्नादाता अब उसी स्थिति की ओर अग्रसर हैं।
संयुक्त किसान मोर्चे के वरिष्ठ सदस्य हन्नान मौला कहते हैं, किसान आंदोलन से भाजपा को बड़ा राजनीतिक नुकसान संभव है। अगर सरकार ये सोच रही है कि पंजाब और हरियाणा की 23 लोकसभा सीटों की उसे कोई परवाह नहीं है तो ये उसकी भारी भूल है। दूसरे प्रदेशों में हो रही किसान महापंचायतों को देखकर सरकार नहीं संभल रही है, तो इसका सीधा सा मतलब है कि वह अपने पांव पर खुद कुल्हाड़ी मारने की तैयारी कर रही है।
हन्नान मौला कहते हैं, भाजपा ने किसान आंदोलन को तोड़ने के लिए जितने भी प्रयास हो सकते हैं, सब करके देख लिए। अब देश के सामान्य लोग इस आंदोलन से जुड़ने लगे हैं। भाजपा के लोग कभी बोलते हैं, ये तो ढाई प्रदेश का आंदोलन है। किसान थक हार कर वापस अपने गांव लौट जाएगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ। जब से किसानों की महापंचायतें शुरू हुई हैं, इस आंदोलन ने केंद्र सरकार और भाजपा की आंखें खोल दी हैं। किसानों को जितना परेशान किया जाएगा, हर राज्य में उसे उतना ही अधिक राजनीतिक नुकसान झेलना पड़ेगा।
योगेंद्र यादव कहते हैं, यह आंदोलन हर बार एक नई शक्ति के साथ आगे बढ़ा है। अब किसान आंदोलन उत्तर भारत, दक्षिण भारत और पूर्व के हिस्सों तक फैल चुका है। भाजपा के लिए एक सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वह हर बात को राजनीति के तराजू में रख देती है। उसने किसान के साथ भी यही किया है।
भाजपा ने किसान को अन्नदाता न मानकर उसे उपभोग की वस्तु मानने की गलती कर दी है। इसका खामियाजा उसे चुनाव में भुगतना पड़ेगा। एक-दो राज्य नहीं, बल्कि हर प्रदेश में उसे राजनीतिक चोट लगेगी। वजह, किसान महापंचायतों के बाद अब बड़ी रैलियां होने जा रही हैं। ये रैलियां भाजपा को उसकी जमीन दिखा देंगी। समाज के विभिन्न वर्ग, सरकारी कर्मचारी और व्यापार जगत भी किसानों के साथ आ गया है।